जैसा की सभी जानते ही है कि पूरे देश में चुनावी माहौल बना हुआ है। और जल्द ही विधान सभा चुनाव शुरू होने जा रहे है। जिसके कारणदेश भर की राजनितिक पार्टियों के बीच गरमा गर्मी का माहौल है। सभी पार्टियां अपनी-अपनी पार्टी को जीताने की हर संभव में जुटी हुई है। चारों पार्टीय़ां राज्य में जगह जगह जाकर रैलिय़ां कर रही है . आपको बता दें इस चुनावी समय़ में अखिलेश सरकार ने बहुत ही चुनावी दाव खेल लिया है , सपा के प्रदेश अध्य़क्ष अखिलेश य़ादव ने 17 ओबीसी (O B C) जातिय़ों को अनुसूचित जाति(SCHEDULED CASTE) कोटे में डालने का फैसला किय़ा है । य़ह जातिय़ां हैं - कहार, कश्य़प, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीमर, बाथम, तुरहा, गोंड, बिंद । हाल ही में हुई कैबिनेट की बैठक में 74 से ज्य़ादा प्रस्तावों को पास किय़ा गय़ा है और 30 से ज्य़ादा महत्वपूर्ण फैसले भी किए गए हैं। जिसमें एक प्रस्ताव य़ह भी था ....... अब इस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास भेजा जाएगा ।
Thursday, 22 December 2016
Wednesday, 26 October 2016
सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर से कुछ ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है, जिसका भारतीय चुनावी प्रक्रिया और भारतीय संविधान पर दूरगामी असर पड़ सकता है।
धर्म के आधार पर वोट की अपील करने की मनाही के कानूनी दायरे पर विचार कर रही सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मंगलवार को एक बार फिर साफ किया कि वे हिन्दुत्व या धर्म के मुद्दे पर विचार नहीं करेंगे। फिलहाल कोर्ट के सामने 1995 का हिन्दुत्व का फैसला विचाराधीन नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें जो मसला विचार के लिये भेजा गया है उसमें हिन्दुत्व का जिक्र नहीं है। उन्हें विचार के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) की व्याख्या का मामला भेजा गया है जिसमें धर्म के नाम पर वोट मांगने को चुनाव का भ्रष्ट तरीका माना गया है। कोर्ट इसी कानून की व्याख्या के दायरे पर विचार कर रहा है।
जानिये हिंदुत्व का यह पूरा मामला है क्या ? क्यों सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर बात करने से इनकार कर रही। बात ये है की इस मामले की जड़ें नब्बे के दशक के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से जुड़ी है , जिसमे हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने के आधार पर बम्बई हाई कोर्ट ने करीब दस नेताओं का चुनाव रद्द कर दिया था। हाई कोर्ट ने इसे चुनाव का भ्रष्ट तरीका माना था, हालांकि 1995 में सुप्रीमकोर्ट ने हाई कोर्ट ने फैसला पलट दिया था। उस समय न्यायधीशों की तीन पीठ की बैठक में कहा था कि हिंदुत्व सिर्फ कोई धर्म नहीं बल्कि एक जीवनशैली है। यहाँ तक कि बीजेपी के नेता अमिताभ सिंह की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित रह गयी।
अब एक बार फिर सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने 1995 में आये फैसले पर दोबारा विचार की दरख्वास्त की। उनकी मांग थी चुनाव में राजनीतिक पार्टियों को हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने से रोक जाए। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने हिदुत्व को नए सिरे से परिभाषित करने से इनकार करते हुए बीते मंगलवार को कहा कि अब वह इस मुकाम पर की पुनर्समीक्षा नहीं करेगा। इस मसले पर मुख्य न्यायधीश टीएस ठाकुर सहित सात सदस्यीय जजों की पीठ ने कहा , हम बड़ी बहस में नही जाना चाहेंगे कि हिंदुत्व क्या है और इसके मायने क्या है। हम अपने 21 बर्ष पुराने फैसले पर भी पुनर्विचार नहीं करेंगे। हम सिर्फ इस फैसले को संदर्भ के तौर पर पेश किये जाने वाले मामले की ही सुनवाई करेंगे।
Tuesday, 25 October 2016
एडमिशन न लेने वाले स्कूलों पर कार्रवाई से इंकार |
इस मोर्डर्न जमाने में बच्चों का बेहतर भविष्य उनकी बेहतर स्कूली शिक्षा से बनता है , लेकिन अब हाल यह हो चुका है कि राजधानी के कई स्कूल ऐसे है जो बच्चों को अपने विद्यालय में एडमिशन ही नही देते है। ऐसे विद्यालयों पर पहले करवाई का प्रावधान था जिससे बच्चों के माता-पिता को ज्यादा मुश्किलो का सामना नहीं करना पड़ता था , लेकिन राईट टू एजुकेशन (R T I) के तहत बच्चों का एडमिशन न लेने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई से जिला प्रशासन ने इनकार कर दिया है । अफसरों का कहना है कि आरटीआई एक्ट में एडमिशन के लिए पूरी गाइडलाइन दी गयी है , लेकिन इस पर कार्रवाई न करने वाले स्कूलों पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई का कोई प्रावधान नही है । आलम यह है कि ६ से अधिक स्कूलों ने एडमिशन देने से मन कर दिया है जिससे लगभग 200 पेरेंट्स भटक रहे है और जब जिला प्रशासन से सवाल किया तो वे यह कहकर पीछे हट गए की कार्यवाई का कोई प्रावधान ही नही है। और वहीँ एक ओर आरटीआई एक्टिविस्ट समीना बानो ने बताया कि आरटीआई में भले ही कार्रवाई का कोई नियम न हो, लेकिन स्कूलों को शासन की ओर से आदेश जारी किया गया है। इस बयान के बाद भी अगर कोई स्कूल बच्चों को एडमिशन देने से मना कर रहा है तो यह शासनादेश का उल्लंघन समझा जाएगा और उनपर कड़ी कार्यवाई भी की जा सकती है। इन सब से तो यही समझ आता है जिला प्रशासन जरूरतमंद बच्चों के एडमिशन के लिए प्रयास ही नहीं कर रही है बल्कि उनकी शिक्षा में रोड़ा बनने का काम कर रही है। लखनऊ के डीएम का कहना है कि इस बारे मे कानूनी राय ली गयी है। इस एक्ट के तहत कोई भी कार्रवाई का प्रावधान नही है और ऐसे में हम चाहते हुए भी स्कूलों पर कार्रवाई नहीं कर सकते।
Sunday, 16 October 2016
स्वदेशी कंपनी पर आज एक रुपये का भी कर्ज नहीं
1920 का वक्त और उसी समय गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन का आगाज। ब्रिटिश शासकों और कंपनियों के खिलाफ जनता में जबर्दस्त आक्रोश था। जगह-जगह विदेशी कपड़ों की होली जलाई जा रही थी। 1857 के बाद से फिर राष्ट्रवादी माहौल का उभार शुरू हुआ। उसी कालचक्र में 1925 में हेडगेवार आरएसएस की स्थापना कर राष्ट्रवाद को धार देने में जुटे थे, मगर विदेशी कंपनियों का मुकाबला करने के लिए भी कोई स्वदेशी कंपनी होनी चाहिए थी। इस बीच 1929 में गौर मोहन दत्ता ने स्वदेशी आंदोलन को व्यावसायिक धरातल पर उतारते हुए जीडी फार्मास्युटिकल्स की कलकत्ता में नींव डाली। जब कंपनी ने बोरोलिन क्रीम बाजार में उतारी तो तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय चौंक पड़ा। अंग्रेजी हुकुमत में बोरोलीन जैसी भारतीय कंपनी की लोकप्रियता से अंग्रेज अफसर परेशान हो गए। उन्होंने कई तरह की बंदिशें डालनी शुरू कीं, मगर इन सबसे लड़ते हुए बोरोलीन क्रीम हिंदुस्तान की जनता के हाथ पहुंचती रही। तब से आज 87 साल हो गए, मगर आज भी कंपनी की सेहत पर कोई असर नहीं है। जहां आज बडे़-बड़े औद्यौगिक घरानों की कंपनियों हजारों करोड़ के कर्ज में डूबी हैं वहीं यह स्वदेशी मॉडल की कंपनी पर देश की जनता का सरकार का एक रुपया भी कर्ज नहीं है। बिना किसी मार्केटिंग तामझाम के भी यह कंपनी 2015-16 में 105 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल करने में सफल रही। बोरोलिन प्रोडक्ट की लोकप्रियता का ही नतीजा है कि इसकी निर्माता फार्मा कंपनी को भी बोरोलिन कंपनी लोग कहने लगे। यानी जीडी फार्मा और बोरोरिन एक दूजे के पर्याय बन गए।
देश आजाद हुआ तो बांटी थी एक लाख क्रीम
बोरोलिन के संस्थापक गौर मोहन दत्ता के पौत्र देबाशीष दत्ता इस समय कंपनी के एमडी हैं। कहते हैं कि जब 1947 में देश आजाद हुआ तो कंपनी ने हरे रंग की ट्यूब वाली एक हजार क्रीम बांटी। अंग्रेजी हुकूमत में जिस तरह से स्वदेशी कंपनी की राह में रोड़े अटकाए गए उन रोड़ों के अंग्रेजों की विदाई के साथ खत्म होने के जश्न में कंपनी ने सबके गाल पर मुफ्त में क्रीम पहुंचाने की पहल की।
नेहरू हों या राजकुमार सबके घर पहुंची क्रीम
1929 में स्थापना के बाद से बोरोलिन क्रीम की इतनी लोकप्रियता बढ़ी कि उस समय के सभी बड़े कांग्रेसी नेता और अन्य हस्तियां इसे इस्तेमाल में लाने लगीं। चाहे पंडित नेहरू रहे हों या फिर अभिनेता राजकुमार। बोरोलिन की खुशबू और एंटीसेप्टिक होने के चलते लोग इस स्वदेशी क्रीम के दीवाने बनते गए।
Thursday, 15 September 2016
टीवी देखकर तीसरी के छात्र ने लगाई फांसी |
उत्तरप्रदेश में यूँ चला टेलीविज़न का चलन ,की क्या कहे बच्चा-बच्चा इसमें समां ही जाता है । इस दुनिया में जन्म लेने वाला शायद ही ऐसा कोई इंसान हो जो अपनी निजी जिंदगी को किसी और से जोड़कर ना देखता हो , सभी अपनी लाइफ को किसी न किसी से प्रेरित कर ही जीने की कोशिश किया करते है जिसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण सामने आया है , यह मामला है लखनऊ में रहने वाले एक नौ वर्षीय छात्र का , जिसने टीवी से प्रेरित होकर अपनी ज़िन्दगी से खिलवाड़ कर डाला । लखनऊ के अलीगंज सेक्टर- एल स्तिथ मिर्ज़ापुर गाँव में रहने वाले कक्षा तीन के छात्र ने फांसी लगाकर अपनी दे दी । गौरतलब है की अपनी माँ की तबियत ख़राब होने के चलते ओम ने यह कदम उठाया है । हालाँकि घटनास्थल पर कोई भी सुसाइड नोट नही मिला है ।
परिवारजनों से बातचीत दौरान उन्होंने बताया की उसकी माँ को डेंगू हो गया था जिसकी वजह से वह काफी दिनों से बीमार चल रही थी और पास के ही अस्पताल में उसका इलाज़ चल रहा था , वारदात के दिन ओम अपनी माँ से मिलकर घर लौटा , वह काफी निराश लग रहा था , और बिना किसी से बात किये वह ऊपर अपने कमरे में चला गया , जैसा की सभी जानते है बच्चों को टीवी देखना बहुत ही पसंद होता है , ओम ने भी यही किया खुद को शांत करने के लिए वह टीवी देखने लगा । अनुमान यही लगे जा रहा है की टीवी में कोई भावनात्मक दृश्य देखकर , उसे अपनी जैसी स्तिथि देखने को मिली जिसका हल उसे फांसी लगाना ही मिला ।
Wednesday, 7 September 2016
aazam khan ka viral hui vivadit photo par bayaan
सपा सरकार के मंत्रियों के बारे
में अक्सर ही लोग बातें करते रहते है जैसे की अभी कुछ दिन पहले ही विधानसभा मानसून
सत्र में 4 साल के
अंतराल में किये गए भाजपा के प्रवक्ता सुरेश खन्ना के द्वारा किये सवालों के जबाब
मिलने पर जनता के पैरों तले ज़मीन
खिसक गयी , बताते
चले की इसमें आज़म खान का नाम तीसरे पायदान पर था और अब एक बार फिर विवादित बयानों
के चलते वो सुर्ख़ियों में नज़र आये ।
यह मामला
है फायरब्रांड और कद्दावर नेता आज़म
खान की एक आरोपी के साथ फोटो वायरल होने की । गौरतलब है की मानव तस्करी के
मामले में पीतलनगरी मुरादाबाद से गिरफ्तार आफाक बाकरी के साथ फोटो वायरल होने से प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खां बेहद
तिलमिलाए हैं। रामपुर में कल अपने बेटे के साथ जनसभा में आजम खां मीडिया पर जमकर
बरसे और सभी की ईंट से ईंट बजाने की धमकी भी दी। इस दौरान आजम खां ने मीडिया से
कहा कि मैंने तो नाचने वाली (जयाप्रदा) को भी सांसद बनाया है, उसके साथ भी मेरी फोटो छापो। फोटो में वह
सेक्स रैकेट के सरगना के साथ खड़े हुए है , लेकिन इस बात
से उन्हें ज़िल्लत महसूस नहीं हुई ,बल्कि उन्होंने अपना सारा गुस्सा मिडिया पर निकाल
दिया ,और बेहद ही बेरुखी अंदाज़ से कहा की हमारे
साथ वैश्या और दलाल भी
खड़े हो सकते हैं , हलाकि अभी भी उनके गुस्से का गुब्बार फूटा
नही है और इसी क्रम में उन्होंने रामपुर से सांसद
जयाप्रदा को भी लपेटे में ले लिया , और उनको एक
नाचने वाली नाम करार दे दिया |
कल तो उन्होंने अपने बेटे अब्दुल्ला आजम
स्वार टांडा के पक्ष में स्वार तहसील में एक जनसभा की।
उन्होंने कहा कि चुटकी भर आरएसएस के लोग गुजरात तो कर सकते हैं, मुजफ्फरनगर तो कर सकते हैं, दादरी तो कर सकते हैं, लेकिन मोहब्बत का पैगाम नहीं दे सकते, ये हमारा जिगरा है कि हमारे पास वक्त न होने के
बावजूद हम सारा काम छोड़ कर लखनऊ से रामपुर आये एक आरएसएस कार्यकर्ता की बीबी से
राखी बंधवाने के लिए।
Saturday, 3 September 2016
मंत्रियों द्वारा की गई सरकारी खजाने की लूट |
सूबे की
राजधान, लखनऊ, नबाबों का शहर कहलाता है और
यहाँ की मेहमाननवाजी तो दुनिया भर में मशहूर है ही , इस बात को सही साबित करने वाले कोई और नही
बल्कि हमारी ही सरकार के कुछ लोग हैं , जी हाँ कुछ ऐसे मंत्री भी है जिन्होंने
जनता के हित के लिए चाहे कुछ ना किया हो , लेकिन उनकी मेहमाननाबाज़ी में कोई कसर नही
छोडी | यह बात खुद उत्तर प्रदेश के मुख्मंत्री , अखिलेश यादव ने विधानसभा सत्र में
तब कही जब भाजपा के सुरेश खन्ना ने उनसे मंत्रियों और विधायकों के पॉकेट खर्च के
बारे में ब्यौरा माँगा , तब सीएम ने विस्तार से इसका जबाब दिया |
बताते चले की अखिलेश सरकार के मंत्रियों ने चार वर्ष में करीब 9 करोड़
रूपए सिर्फ चाय-पानी और मेहमाननवाजी में उड़ा दिए , विधानसभा के मानसून सत्र में
सीएम ने बताया की अभीतक सरकार के मंत्रियों ने कुल 8 करोड़ 78 लाख 12 हज़ार 474 रूपए
खर्च किये हैं| खर्च करने वालों में से सबसे आगे रही राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
अरुण कुमारी कोरी , कोरी ने 22 लाख 93 हजार 800 रूपये खर्च
किए जबकि बेसिक शिक्षा राजयमंत्री कैलाश चौरसिया 22 लाख 85
हजार 900 रूपये के साथ दूसरे नंबर रहे| खर्चे
के मामले में संसदीय कार्य व शहरी विकास मंत्री तथा पार्टी के फायरब्रांड नेता आजम
खां भी पीछे नही रहे , हालाँकि इन्होने तो
कम ही लोगों को जलपान कराया , लेकिन फिर भी 22 लाख 86
हजार 620 रूपया खर्च कर दिये | और बहुत से और
भी मंत्री इसी क्रम में जोड़े गए है |
भाजपा प्रवक्ता ने इस खर्च को सरकारी खजाने की लूट बताया है।
उनका मानना है सरकार प्रदेश में मूलभूत सुविधा जैसे शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए धन
की कमी का रोना रोती है, जबकि मंत्री करोडों चाय समोसे पर
उडा देते हैं। सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने विपक्षी दलों पर इस मामले को लेकर
बेवजह तूल देने का आरोप लगाते हुए कहा, यह खर्चा सरकारी
बैठकों और मंत्रियों से मिलने आने वाले लोगों पर शिष्टाचार में करना पड़ता है और
जरूरी है।
Wednesday, 31 August 2016
यूपी में भय और भूख के शिकार परिवार ने खुद को घर में किया कैद , मुखिया की मौत
यूपी में अभी भी ना जाने कितने गाँव ऐसे है जहाँ पर आम लोगों की मौत
का कारण सिर्फ और सिर्फ गरीबी है , जिसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है मऊ में रहने वाला
एक परिवार | हाल में ही इस परिवार के मुखिया सुभाष गुप्ता भारी भरकम बिजली के बिल
की भेंट चढ़ गए | बताते चले की लगभग पांच साल पहले बिजली का बिल न भर पाने की वजह
से ,बिजली अधिकारियों ने उनके घर की बिजली काट दी थी , जिसके बाद उनके घर पर
बच्चों का पढना भी मुश्किल हो गया था , इसलिए घर के मुखिया ने बेटी को उसके मामा
के घर पढने भेज दिया था | सब कुछ सही चल रहा था की अचानक बिजली विभाग के अधिकारी
उनके घरबिजली के बिल के बकाये की ब्याज सहित वसूली करने के लिए बिजली
विभाग के अधिकारी और लाइनमैन 99,366 रुपये का बिल लेकर उनके घर पर आ धमके, और बहुत बुरी तरह
घरवालों को धमकाया , इस बात से पूरा परिवार घबरा गया की वो इतना कैसे चुका पाएँगे
|
बसूली प्रक्रिया के भय से सुभाष गुप्ता और उनका परिवार इस हद तक घबरा
गए की उन्होंने खुद अपने घर में कैद कर
लिया | जब कई दिनों तक कोई दिखाई नही पड़ा ,तब पड़ोसी इकठ्ठा हुए और घर के पीछे वाले
दरवाज़े से घुसकर मामला समझने की कोशिश की | जब बे घर के भीतर पहंचे तो वहां का
नज़ारा देखकर सबके हाथ-पाँव फूल गए , क्योंकि सुभाष गुप्ता की मौत हो चुकी थी , मरे
पति के शव के पास बैठी पत्नी , ह्रद्या वेसुध हालत में थी | पूरे घर में लाश के
सड़ने की दुर्गन्ध आ रही थी , जिससे की लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी |
हालाँकि लोगों ने तुरंत ही पुलिस को इस बात की खबर दी और शव को पोस्त्मर्तम के लिए
भेज दिया गया | पडोश के लोगों ने जब परिज़नों से बात की तो उन्होंने बताया की पिछले
आठ दिनों घर में किसी ने अन्न का एक दाना तक नही खाया है |
Tuesday, 30 August 2016
भारत में पर्यटकों को छोटे कपडे पहनना मना - बुकलेट जारी |
केंद्रीय संस्कृति
एवं पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने विदेशी महिला पर्यटकों को लेकर एक विवादित बयान
दिया है, केन्द्रीय मंत्री ने भारत आने वाली विदेशी महिलाओं को स्कर्ट और छोटे
कपडे न पहनने पर सलाह दी है , और इसके साथ ही रात में अकेले बाहर न घूमने के लिए
भी सलाह दी है , ऐसा पहली बार नहीं हुआ है की किसी ने महिलाओं के कपड़ों को लेकर
कुछ टिप्पड़ी ना की हो , गौरतलब है की इससे पहले भी महेश शर्मा ने महिलाओं पर एक
विवादित बयान दिया था , उन्होंने कहा था की “लड़कियों का रातभर बाहर रहना हमारी
संस्कृति का हिस्सा नहीं है , विदेश में लडकियां नाईट आउट करती होंगी, लेकिन यहाँ
ऐसा नही होता है” | इस तरह के बयान की
पुनरावृत्ति से एक बार फिर सपा सरकार के किये गए कामों पर उंगली उठाई जा रही है ,
क्योंकि कहीं न कहीं इस बयान को महिलाओं की सुरक्षा से जोड़कर देखा जा रहा है |
हालांकि इस बात को केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा ने गलत ठहराते हुए कहा है की मैंने
ऐसा कोई बयान नहीं दिया कि महिलाओं को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं, मैं केवल
धार्मिक स्थानों के संदर्भ के बारे में बोल रहा था। यदि मैंने महिला पर्यटकों से
रात में घूमने के दौरान अधिक सतर्कता बरतने की बात कही तो इसमें गलत क्या है? मैंने केवल इस बात
को लेकर चिंता जताई। लिहाजा इस बात को कहने के पीछे उन्होंने इन पर्यटकों की
सुरक्षा को वजह बताया है , सिर्फ इतना ही नहीं मंत्री जी ने ताज नगरी आगरा के
पर्यटकों के लिए एक बुकलेट भी जारी की है , जिसमे साफ़ तौर पर लिखा होगा की शहर
घुमने आने पर “क्या करें और क्या न करें ”| जिनके अनुसार महिला पर्यटकों को देर शाम घुमने जाने पर स्कर्ट न
पहनने की हिदायत दी गई है। हालांकि कुछ देर बाद मंत्री जी अपनी बात से मुकरते हुए
बोले- “भारत मंदिरों का देश है, यहां वैसी ही
वेशभूषा पहने”। शर्मा ने आगे यह भी कहा कि विदेशी जब
मथुरा और वृंदावन जाएं तो भारतीय संस्कृति की संवेदनशीलता का ख्याल रखें।
हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं, इस बारे में हमने
कोई स्पष्ट दिशा निर्देश जारी नहीं किये हैं । हम किसी की तहजीब को बदलने की
कोशिश नहीं कर रहे हैं, और उनका मानना है की हमारी भारतीय संस्कृति पश्चिमी
संस्कृति से अलग है |
Tuesday, 9 August 2016
इलाहाबाद के स्कूल में राष्ट्रगान पर पाबंदी लगाने पर प्रबन्धक पर कार्यवाही की गई
कैसा हो अगर कोई
देशवासी अपने ही देश के राष्ट्रगान को गाने से हिचकिचाए , और उसकी निंदा करे ?
भारत देश के हर विद्यालय में दिन की शुरुआत राष्ट्रगान से ही होती है , स्कूलों
में बच्चों को राष्ट्रगान के महत्व समझाए जाते हैं,शायद ऐसा पहली बार हुआ होगा कि
किसी विद्यालय में बच्चों को राष्ट्रगान गाने पर सज़ा दी गई हो , यह आश्चर्यचकित कर
देने वाली बात उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद की है ,जहाँ एक स्कूल के प्रबंधक ने
राष्ट्रगान गाने पर पाबंदी लगा दी है , हालाकि प्रशासन ने इस पर कड़ी कार्रवाई की
है और पुलिस ने देशद्रोही का मुकदमा दर्ज कर स्कूल प्रबंधक को गिरफ्तार कर लिया है
| बताते चलें कि लगभग 12 साल पहले इस स्कूल की स्थापना की गई थी , और स्थापना के साथ ही
राष्ट्रगान न गाए जाने का तुगलकी फरमान जारी किया गया तब से लेकर आज तक ये फरमान बदस्तूर
जारी है , काफी अरसे तक इसे झेलने के बाद जब
प्रिंसिपल और आठ टीचर्स ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई तो प्रवन्धक ने उन्हें इस्तीफा
देने को मजबूर कर दिया , इस्तीफा देने वाले टीचर्स का कहना था कि राष्ट्रगान
संविधान की ओर से दिया गया मूल अधिकार है और देश की किसी भी ताकत को ये मर्तबा
मोहय नहीं कराया गया कि वो देशवासी के संवैधानिक अधिकार का हनन कर सके , इस पर
विद्ध्यालय प्रबंधक का कहना है कि उनको राष्ट्रगान में “भारत भाग्य विधाता” के
भारत शब्द से ऐतराज़ है और जब तक राष्ट्र्गान से “भारत” शब्द नहीं हटाया जाएगा वे
स्कूल में राष्ट्रगान नहीं गाने देंगे |
प्रशासन की जांच पड़ताल से इस बात का भी खुलासा हुआ है कि काफी समय से यह स्कूल
बिना मान्यता के ही चल रहा है , फिलहाल स्कूल को सील कर दिया गया है | लेकिन क्या
ऐसे बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करना सही है ? स्कूल के सील होने का सबसे ज्यादा
असर तो वहां पढ़ रहे छात्रों पर पड़ा होगा | जिससे उनका भविष्य बनने के बजाये बिगड़ने
की तरफ अग्रसर हो जायेगा l
Monday, 8 August 2016
बेसहारा का सहारा बनो
कहते है बच्चे भगवान् का रूप होते हैं लेकिन किसी भी बच्चे के लिए उसके
भगवान् तो उसके माँ-पापा ही होते है , इस बात का जीता-जागता उदाहरण एक फिल्म Biwi
no.1 के गाने
“मुझे माफ़ करना ॐ साईं राम,सबसे पहले लूँगा मम्मी-डैडी का नाम” में दिया गया
था , यह गाना सभी में बहुत लोकप्रिय भी हुआ था | इस गाने में बच्चे और उनके पेरेंट्स
का अटूट बंधन दिखाया गया है , अक्सर असल ज़िन्दगी में भी ऐसा देखने को मिलता है |
माना जाता है कि बच्चों का भविष्य उनकी परवरिश पर निर्भर रहता है , जिसकी जैसी
परवरिश उसका वैसा भविष्य | लेकिन क्या कभी सोचा है कि जिस बच्चे का कोई न हो यानी
वो अनाथ हो , तो उनका भविष्य कैसा होता होगा ,क्या उन बच्चों को बेहतर जीवन जीने
का अधिकार नही है ? क्या उनकी ख्वाईशें नही होती , जिन्हें वो पूरा करना चाहते हो
? हर कोई अपने बच्चों को बेस्ट (best) देने की कोशिश करता है , उसकी हर इच्छा को
उसके कहने से पहले पूरा कर देते है , लेकिन इंसानियत के नाते भी ,वहीँ पास खड़े
किसी अनाथ / बेबस बच्चे को कुछ नहीं दे सकते | हालाकि अभी भी इस देश में इंसानियत
ख़त्म नहीं हुई , इस बात को शाबित किया है दिल्ली में रहने वाली एक लड़की ने , निकिता
हर रोज़ ऑफिस से लौटते समय ऐसे कई बच्चो को देखती थी , उनसे बातें करती थी , बच्चों
से बात करने के बाद उसका मन बहुत बेचैन हो जाता था , वो दिन रात बस सड़क पर भीख
मागंते बच्चों के बारे में सोचती रहती थी , लेकिन कुछ कर ना पाती थी | एक दिन हतास
होकर उसने अपने पति से इस बात का जिक्र किया कि हमारे पास सब कुछ होते हुए भी हमलोग
खुश क्यूँ नहीं रह पाते है , तब दोनों ने उन्ही में से 5 बच्चों को गोद लेना का
निर्णय लिया , और फिर ख़ुशी-ख़ुशी उन पाँचों बच्चों की ज़िन्दगी की बागडोर अपने
हातहों में लेली | यदि निकिता की तरह हर कोई इन बच्चों के प्रति संवेदना दिखाए ,
तो हमारे भारत देश से ऐसे बच्चों की गिनती कम हो जाएगी , उनको अपने हिस्से की ख़ुशी
मिल सकेगी , और वो खुद-व-खुद बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर हो जाएँगे |
Thursday, 4 August 2016
लखनऊ में मवेशियों का कहर
आजकल लखनऊ शहर की
सड़कों पर बेतरकीब वाहनों से ज्यादा , आवारा मवेशियों का खौफ नज़र आ रहा है | जिन
सड़कों पर पहले राहगीर इस बात से डरते थे कि कहीं कोई गाडी उन्हें अपनी ज़द में न
लेले , उन्ही सड़कों पर इन मवेशियों ने ऐसा आतंक मचा रखा है कि अब वाहन चालाक भी
सड़क पर अपनी गाडी दौड़ाने से डरने लगे हैं , वीआईपी रोड से लेकर शायद ही कोई
गली-मौहल्ला बाकि बचा होगा , जहाँ मवेशियों का डर न हो | इन आवारा जानवरों ने
राजधानी के लोगों जीना मोहाल कर दिया है , इतनी परेशानियों के बाबजूद भी नगर निगम
हाथ पर हाथ रखे बैठी है , जिसका खामियाजा आये दिन आम जन मानस को भुगतना पड़ रहा है
, कहीं न कहीं से लोगों के चोटिल होने की खबर सुनाई पड़ती है ,पिछले एक सप्ताह में
करीब आधा दर्ज़न से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं | इसके बाद भी अभी तक नगर निगम के
द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है , हालाकि अभी दो दिन पहले ही नगर प्रशासन ने
रात में सांड पकड़ने का अभीयान चलये जाने की बात कही गई थी , लेकिन कही हुई बात कब
हवा में उड़ गई पता ही नहीं चला , और अगर जल्द ही कुछ न किया गया तो सड़कों पर राहगीरों
और वाहनों की जगह सिर्फ मवेशी ही नज़र आएँगे |
बिजली बिल के दामो में हुए बदलाब से कुछ खुश ओर कुछ नाखुश
उत्तर प्रदेश सरकार ने
चुनावी साल में एक बार फिर लोगों को आकर्षित करने का मन बना लिया है , इस बार सपा सरकार ने आम जनता को खुश करने के लिए
बिजली दर सस्ती करने का एलान किया है | जी हाँ
यूपी
विद्युत नियामक आयोग ने बिजली बिलों पर लागू 2.84 फीसदी सरचार्ज को ख़त्म करने की घोषणा कर दी , जिससे घरेलु विद्युत् उपभोक्ताओं को काफी हद तक राहत
मिलने की उम्मीद है , दरअसल प्रदेश के बिजली
उपभोक्ताओं से मौजूदा समय में रेग्युलेटरी सरचार्ज प्रथम और द्वितीय नाम से दोहरा
रेग्युलेटरी सरचार्ज लिया जा रहा था , बताते चलें कि अब बिजली उपभोक्ताओं को अप्रैल माह से बिजली बिल कम देना पड़ेगा | लेकिन इससे
व्यापारी- उद्यमियों को भारी झटका लगा है , क्यूंकि वाणिज्यिक बिजली के दामों में सरकार ने कोई छूट नहीं दी
,बल्कि इसके दरों में 3.99 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है | आयोग ने राज्य में सूखे के
हालात को देखते हुए ग्रामीण अन्मीटरड कनेक्शनों पर भी १० फीसदी सरचार्ज वसूलने का
आदेश अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया है इससे बुंदेलखंड व सूखाग्रस्त क्षेत्रों
को राहत मिली है | सिर्फ इतना ही नहीं विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष , दीपक वर्मा ने बताया कि पॉवर
कारपोरेशन द्वारा दाखिल ट्रैफिक प्रस्ताव में 5.75 फीसद बढ़ोतरी भी की गई , इसके
साथ ही सिचाई में इस्तेमाल होने वाले निजी नलकूपों और पम्पसेंट की बिजली दरों से
कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया है |
Tuesday, 12 July 2016
मासूमियत कुचल कर जबरन ली गईं कोख
हर लड़की बचपन से यही सपना संजोते
हुए बड़ी होती है कि जब वह बड़ी होगी तो उसकी भी शादी होगी | और एक लड़की के लिए इससे
भी अच्छा होता है माँ बनने का एहसास ,लेकिन क्या हर लड़की अपना सपना वैसे ही पूरा
कर पाती है ? जैसा कि वो हमेशा से सोचती है ? ऐसा ही एक उदाहरण है झारखण्ड में
रहने वाली एक लड़की जिसके साथ कुछ ऐसा हुआ जो कोई भी लड़की सपने में भी सोच नही सकती
| इस बात का खुलासा तब हुआ जब गुमला के चाइल्ड वेल्फेयर कमेटी में जाकर उस लड़की ने
अपनी आपबीती बताई , जो आखों में सपने लेकर झारखण्ड से दिल्ली गई थी , लेकिन उसे
क्या पता था कि दिल्ली में उसके साथ क्या
होने वाला था ,जहाँ कुछ वहशी दरिन्दे उसका इंतज़ार कर रहे हर लड़की बचपन से यही सपना संजोते हुए बड़ी होती है कि जब वह बड़ी होगी तो उसकी भी शादी होगी | और एक लड़की के लिए इससे भी अच्छा होता है माँ बनने का एहसास ,लेकिन क्या हर लड़की अपना सपना वैसे ही पूरा कर पाती है ? जैसा कि वो हमेशा से सोचती है ? ऐसा ही एक उदाहरण है झारखण्ड में रहने वाली एक लड़की जिसके साथ कुछ ऐसा हुआ जो कोई भी लड़की सपने में भी सोच नही सकती | इस बात का खुलासा तब हुआ जब गुमला के चाइल्ड वेल्फेयर कमेटी में जाकर उस लड़की ने अपनी आपबीती बताई , जो आखों में सपने लेकर झारखण्ड से दिल्ली गई थी , लेकिन उसे क्या पता था कि दिल्ली में उसके साथ क्या होने वाला था ,जहाँ कुछ वहशी दरिन्दे उसका इंतज़ार कर रहे थे , हालांकी वो उन दरिंदों के चंगुल से तो किसी तरह से भाग निकली थी | पर अभी वो जब भी इस पल को याद करती है तो वह सिहर उठती है | ये बात सर्फ एक लड़की की नही है , ऐसी बहुत सी लड़कियां है जो झारखण्ड में हो रहे इस घिनोने खेल से परिचित हैं | झारखंड में बच्चों के सरंक्षण या मानव तस्करी के लिए काम करने वाले लोगों का कहना है कि झारखंड की लड़कियों को बच्चे पैदा करने की मशीन के रूप में इस्तेमाल करने का यह कोई इकलौता केस नहीं है. ज्यादातर नाबालिग लड़कियों को अपना शिकार बनाते हैं जो कि इनके खिलाफ आवाज़ न उठाए , जिससे कि इनका काम बिना किसी के रोड़ा अटकाये पूरा हो सके | लडकियों व युवतियों से जबरदस्ती बच्चा पैदा कराया जाता है और उस बच्चे को किसी नि:संतान दम्पति को बेच दिया जाता है , लेकिन इसके लिए वे बहुत से तरीके अपनाते है , कभी रेप/गैंग रेप के जरिए तो कभी इंजेक्शन के जरिए उन्हें प्रेग्नेंट कर उन्हें जबरन सरोगेसी के लिए मजबूर किया जाता है, ताकि उन लोगों का काम भी चलता रहे जिनका काम इन लड़कियों को भेडियों के आगे परोसने का है जो इनके तन को तब तक नोचें जब तक इनकी भूख ख़त्म न हो जाए और इसका इंतजाम करने वालों को मुह मांगी कीमत मिलती रहे , जिसके लिए न तो कोई आवाज़ उठाने वाला है और न ही इनकी सुध लेने वाला , हाँ बस कुछ है जो इनसे अपनी केस स्टडी में इजाफा करती हैं और डायस पर खड़े होकर बड़े-बड़े उपदेश देती हैं , जानते हैं क्यों ? क्योंकि इन लोगों ने जो सेक्स किया है वो इंजॉय करने के लिए ना कि बे मर्ज़ी और न ही किसी के भोग के लिए , फर्क साफ़ है , कहावत है कि हमाम में हम सब नंगें हैं पर समझना ये होगा है कि हमाम महंगे बाथ टब और आलीशान फिनिशिग के संसाधनों से बना हमाम या फिर खुला आसमान lथे , हालांकी वो उन
दरिंदों के चंगुल से तो किसी तरह से भाग निकली थी | पर अभी वो जब भी इस पल को याद
करती है तो वह सिहर उठती है | ये बात सर्फ एक लड़की की नही है , ऐसी बहुत सी
लड़कियां है जो झारखण्ड में हो रहे इस घिनोने खेल से परिचित हैं | झारखंड में बच्चों के सरंक्षण या मानव तस्करी के लिए काम करने
वाले लोगों का कहना है कि झारखंड की लड़कियों को बच्चे पैदा करने की मशीन के रूप
में इस्तेमाल करने का यह कोई इकलौता केस नहीं है. ज्यादातर नाबालिग लड़कियों
को अपना शिकार बनाते हैं जो कि इनके खिलाफ आवाज़ न उठाए , जिससे कि इनका काम बिना किसी
के रोड़ा अटकाये पूरा हो सके | लडकियों व युवतियों से जबरदस्ती बच्चा पैदा कराया
जाता है और उस बच्चे को किसी नि:संतान दम्पति को बेच दिया जाता है , लेकिन इसके
लिए वे बहुत से तरीके अपनाते है , कभी रेप/गैंग रेप के जरिए तो कभी इंजेक्शन के
जरिए उन्हें प्रेग्नेंट कर उन्हें जबरन सरोगेसी के लिए मजबूर किया जाता है, ताकि
उन लोगों का काम भी चलता रहे जिनका काम इन लड़कियों को भेडियों के आगे परोसने का है
जो इनके तन को तब तक नोचें जब तक इनकी भूख ख़त्म न हो जाए और इसका इंतजाम करने
वालों को मुह मांगी कीमत मिलती रहे , जिसके लिए न तो कोई आवाज़ उठाने वाला है और न
ही इनकी सुध लेने वाला , हाँ बस कुछ है जो इनसे अपनी केस स्टडी में इजाफा करती हैं
और डायस पर खड़े होकर बड़े-बड़े उपदेश देती हैं , जानते हैं क्यों ? क्योंकि इन लोगों
ने जो सेक्स किया है वो इंजॉय करने के लिए ना कि बे मर्ज़ी और न ही किसी के भोग के
लिए , फर्क साफ़ है , कहावत है कि हमाम में हम सब नंगें हैं पर समझना ये होगा है कि
हमाम महंगे बाथ टब और आलीशान फिनिशिग के संसाधनों से बना हमाम या फिर खुला आसमान l
Saturday, 9 July 2016
उत्तर प्रदेश और चुनाव का खेल
उत्तर प्रदेश में आगामी विधान सभा चुनाव को देखते हुए सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपनी सारी ताकत झोंक दी है , पर भारतीय जनता पार्टी ने २०१७ चुनाव के लिए गृह मंत्रालय को चुना है आप भी सोच रहे होंगे आखिर केंद्र का गृह मंत्रालय तो भाजपा सरकार के ही अधीन है ? जी नहीं हम उस गृह मंत्रालय की बात नहीं बल्कि उन मंत्रालय की बात कर रहे हैं जिसकी मर्ज़ी के बिना किसी का भी गृहस्त जीवन असंभव है , हमारे आप के घरों में अपना ज्यादा समय किचेन में देने वाली महिलाए , जिनको सबसे ज्यादा समय बेहतरीन पकवान बनाने और नयी डिश बनाने में लगता है जिसके लिए आवश्यकता होती है गैस सिलेंडर की , जिसके दामों में कमी कर महिलाओं को भाजपा ने कहीं न कहीं खुश करने का काम किया है , क्योंकि घर का सारा बजट बनाने का काम हमारे आप के घर की गृहणी ही करती है , भाजपा को विश्वास है कि अगर महिलाओं को खुश कर दिया गया तो समझों काम पक्का , यही वजह है कि गरीब महिलाओं और गरीब परिवारों को मुफ्त में गैस सिलेंडर देने की शुरुवात भी उत्तर प्रदेश से ही की गयी ,ताकि महिलाओं की नव्ज़ टटोल कर पुरुषों को भी अपनी तरफ आकर्षित किया जा सके l
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