Wednesday, 26 October 2016


सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर से कुछ ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है, जिसका भारतीय चुनावी प्रक्रिया और भारतीय संविधान पर दूरगामी असर पड़ सकता है।
धर्म के आधार पर वोट की अपील करने की मनाही के कानूनी दायरे पर विचार कर रही सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मंगलवार को एक बार फिर साफ किया कि वे हिन्दुत्व या धर्म के मुद्दे पर विचार नहीं करेंगे। फिलहाल कोर्ट के सामने 1995 का हिन्दुत्व का फैसला विचाराधीन नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें जो मसला विचार के लिये भेजा गया है उसमें हिन्दुत्व का जिक्र नहीं है। उन्हें विचार के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) की व्याख्या का मामला भेजा गया है जिसमें धर्म के नाम पर वोट मांगने को चुनाव का भ्रष्ट तरीका माना गया है। कोर्ट इसी कानून की व्याख्या के दायरे पर विचार कर रहा है।  
जानिये हिंदुत्व का यह पूरा मामला है क्या ? क्यों सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर बात करने से इनकार कर रही।  बात ये है की  इस मामले की जड़ें नब्बे के दशक के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से जुड़ी है , जिसमे हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने के आधार पर बम्बई हाई कोर्ट ने करीब दस नेताओं का चुनाव रद्द कर दिया था। हाई  कोर्ट ने इसे चुनाव का भ्रष्ट तरीका माना था, हालांकि 1995 में सुप्रीमकोर्ट ने हाई कोर्ट ने फैसला पलट दिया था। उस समय न्यायधीशों की तीन पीठ की बैठक में कहा था कि हिंदुत्व सिर्फ कोई धर्म नहीं बल्कि एक जीवनशैली है। यहाँ तक कि बीजेपी के नेता अमिताभ सिंह की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित रह गयी। 
अब एक बार फिर सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने 1995 में आये फैसले पर दोबारा विचार की दरख्वास्त की।  उनकी मांग थी चुनाव में राजनीतिक पार्टियों को हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने से रोक जाए।  फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने हिदुत्व को नए सिरे से परिभाषित करने से इनकार करते हुए बीते मंगलवार को कहा कि अब वह इस मुकाम पर  की पुनर्समीक्षा नहीं करेगा।  इस मसले पर मुख्य न्यायधीश टीएस ठाकुर सहित सात सदस्यीय जजों की पीठ ने कहा , हम बड़ी बहस में नही जाना चाहेंगे कि हिंदुत्व क्या है और इसके मायने क्या है। हम अपने 21 बर्ष पुराने फैसले पर भी पुनर्विचार नहीं करेंगे। हम सिर्फ इस फैसले को संदर्भ के तौर पर पेश किये जाने वाले मामले की ही सुनवाई करेंगे।  

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