Sunday, 11 June 2017

अगर ट्रैफिक नियम गए टूट तो समझो जिंदगी गई रूठ

कब समझ आयेगा लोगो को की जिन ट्रैफिक नियमों को ताक पर रख गाडियां चलाते हैं वे नियम उन्हीं की भलाई के लिए बनाए जाते हैं, गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल फोन का इस्तेमाल, बिना सीट बेल्ट लगाए कार चलाना, बिना हेलमट पहने गाड़ी चलाना ये सभी नियम बहुत छोटे-छोटे से हैं. इनको ध्यान में रखना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन लोग ऐसा बिल्कुल नहीं करते क्योंकि आज कल उनके पास इसके बारे में सोचने का वक़्त ही नहीं है बस घर से निकले गाड़ी में बैठे और निकल गए , पर उन्हें ये समझना चाहिए कि ट्रैफिक नियमो का पालन करने से केवल आपकी ज़िन्दगी ही नहीं बल्कि उन मासूम की भी ज़िंदगी बचेगी जो आपकी बड़ी-बड़ी गाड़ी के अगल-बगल चल रहे हैं आप अगर बिना सोचे समझे अचानक गाड़ी को किसी भी मोड़ पर मोड़ देंगे तो पीछे से आ रहे किसी भी छोटे वाहन का संतुलन बिगड़ सकता है आप यदि मोबाइल पर बात करते-करते हलका सा भी गाड़ी लेफ्ट या राइट करेंगे तो आपको फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि उसका फर्क आपके लेफ्ट या राइट में चल रहे छोटे वाहन पर पड़ेगा. और इतना सब कुछ होने के बाद अगर कोई छोटा वाहन मालिक आपको सलाह देता है कि जो आप कर रहे हैं वो गलत है तो उसपर आप उसी को दोषी बताते हुए बोलते हैं कि वो देख कर गाड़ी चलाये. अरे बड़ी गाड़ी वाले बाबू लोग आपको कब समझ आएगा कि बड़ी गाड़ियों के साथ बड़ी जिम्मेदारीयां भी आती है। ये बातें कहिसुनी नहीं बल्कि एक ऐसे इंसान से जुड़ी है जो किसी का बेटा, किसी का भाई भी हो सकता है तो सोचिये की उस इंसान की जगह अगर आप या हम होते तो क्या करते. तो चलिए बातों बातों में आपके साथ अपना एक ऐसा किस्सा शेयर करता हूँ जिसने मुझे ट्रैफिक नियमों के बारे में एक पल को सोचने पर मजबूर कर दिया. ज्यादा पुरानी नहीं कल  ही शाम की बात है जब मैं अपने सारे काम निपटा घर की ओर बढ़ रहा था मेरा पूरा ध्यान अपनी गाड़ी में और सड़क पर था मेरे आगे एक लड़की अपने स्कूटर पर जा रही थी, तभी पता नहीं कहां से एक कार बड़ी रफ्तार से अचानक एक गली से निकल कर रोड पर आ गई जिसकी वजह से वो लड़की घबरा गई और उसका संतुलन बिगड़ते-बिगड़ते रह गया. तभी मन में खयाल गूंज उठा कि अगर ये आगे जा रही लड़की उस गाड़ी वाले की वजह से गिर जाती तो उसकी वजह से एक नहीं दो घरों में एक साथ गम की लहर दौड़ जाती पर ऐसा कुछ हुआ नहीं सोचने वाली बात ये है कि मौत के डर से इंसान की सोच इतनी तेज़ हो जाती है कि कुछ ही सैकंडों में पूरी जिंदगी आंखो के सामने घूम जाती है. बहरहाल ऐसा कुछ भी नहीं हुआ सभी कुशल मंगल रहे पर तभी मेरी नजर उस गाड़ी की पिछली सीट पर बैठी बुजुर्ग महिला पर पड़ी जो मेरी गाड़ी की फिसलने की आवाज सुन कर  घबराई हुई सी पीछे देख रही थी उन्हें देखते ही मन में एक सवाल और उठा, आखिर ऐसा कौन सा युवा है जो इस तरह गाड़ी चला रहा है वो भी एक बुजुर्ग महिला को साथ बैठाकर. अपने मन की उत्सुकता को शांत करने के लिए मैंने गाड़ी के पीछे जाने का सोचा और जैसे ही मैं उस गाड़ी के बगल में पहुंचा तो अंदर का नज़ारा देख मेरी आंखे फटी रह गयी. ड्राइवर की सीट  पर एक बुजुर्ग महानुभाव जिनकी उम्र आराम से  75 से 80 के बीच रही होगी और लेफ्ट साइड की पैसेंजर सीट पर भी एक बुजुर्ग थे जिनकी उम्र उनके मित्र जितनी ही रही होगी. ये नज़ारा देख मन में यही बात गूंज उठी कि उम्र 55 की और दिल बचपन का.. खैर ध्यान दिया तो देखा उन बुजुर्ग का पूरा ध्यान उनके हाथ में रखे उनके मोबाइल फोन पर था वे फोन में इतने मग्न थे कि उन्हें पता भी नहीं चला कि मैं उनके बगल में चल रहा हूं और उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा हूं उनका ध्यान मुझ पर तब गया जब पीछे बैठी उस महिला ने उनको मोबाइल रख कर मझसे बात करने को बोला, मैं उनको बताना चाहता था कि वो जो कर रहे थे वो ग़लत है पर उन्होंने थोड़ा सा कांच नीचे कर के मझसे कहा जाओ अपना काम करो.... बिना ये जाने की मैं उनसे किस मसले पर बात करना चाहता हूं और उन्होंने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी और आगे निकल गए. पर दोस्तो इस पूरी आप बीती में दो बातों का इल्म हो गया. एक जब मौत सामने हो तो सबसे पहला चेहरा मां का ही सामने आता है और दूसरा ये की बच्चा किसी का भी हो पर बच्चे को चोट लगने का दर्द सबकी नज़रों में एक सा होता है जो उस बुजुर्ग महिला की आंखो में दिखाई दिया।

Mukul sharma 


Monday, 15 May 2017

दूल्हा नहीं जानता हिन्दी, तो दुल्हन को बोलना पड़ेगा टाटा-बाय


भारत में लड़कियों की तरह लड़के भी अपनी शादी का सपना देखते हैं, पत्नि के सेटिल होकर जिन्दगी में खुशी भरने की चाह रखते हैं. एक मां-बाप को अपनी बेटी के लिए एक ऐसा लड़के का रिश्ता देखते हैं जो अच्छा कमाता हो, घर वार संभाल सकता हो. लेकिन उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. क्योंकि दूल्हा नहीं जानता 'हिन्दी' तो हो जाएगा बबाल. ‘हिंदी’ नहीं आने पर एक दूल्हे को अपनी बारात लेकर लौटना पड़ा. दुल्हन ने बकायदे सवाल पूछे और कुछ शब्द हिंदी में लिखकर देने को कहा. दूल्हे महाराज शब्द नहीं लिख पाए और उनकी शादी की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

दूल्हा नहीं जानता 'हिन्दी', दिल के अरमान आसुओं में बह गए

दरअसल, मैनपुरी के कुरावली में फरूखाबाद से बारात आई थी. गाजे-बाजे के साथ बाराती लड़की के घर पहुंचे थे. लड़के के घरवाले बहुत खुश थे लेकिन उनकी खुशी ज्यादा देर तक नहीं ठहर पाई. लेकिन, इसी बीच दुल्हन ने कुछ ऐसा कहा कि लड़के वालों के होश उड़ गए. दुल्हन ने दूल्हे से हिंदी के दो शब्द लिखने को कहा.

‘परिश्रम’, ‘दृष्टिकोण’ और ‘सांप्रदायिक’ लिखने को कहा

‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार दूल्हे को हिंदी के तीन शब्द ‘परिश्रम’, ‘दृष्टिकोण’ और ‘सांप्रदायिक’ लिखने को कहा. दूल्हा इन तीन शब्दों को सही नहीं लिख पाया और लड़की ने शादी से साफ इनकार कर दिया. हालांकि दुल्हन सिर्फ पांचवी क्लास पास थी और दूल्हा इंटरमीडिएट. दुल्हन की इस अजीबो-गरीब बात पर सभी घरवाले हक्के-बक्के रह गए. और फिर शुरू हुई हिंदी ‘परीक्षा’. इस परीक्षा की शुरूआत दूल्हे की ओर से ही की गई थी. लड़के ने लड़की को एक डायरी में अपना नाम और पता लिखने को कहा था. साथ ही हिंदी जांचने के लिए कुछ शब्द भी लिखवाए. लड़की ने सभी कुछ अच्छे से कर दिया.

अपना नाम लिखने के काबिल भी नहीं है दूल्हा

फिर वही डायरी और पेन लड़की ने लड़के को दिया और हिंदी के उपर दिए गए तीन शब्द लिखने को कहा. यहां तक कि इंटर पास लड़का अपना नाम और पता भी ठीक से नहीं लिख पाया. परिवार जनों ने इस मामले में लड़की को मनाने की काफी कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी.

Saturday, 4 February 2017

रात भर का है मेहमान अंधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा।
रात जितनी भी संगीन होगी, सुबह उतनी ही रंगीन होगी।"

Thursday, 22 December 2016

जैसा की सभी जानते ही है कि पूरे देश में चुनावी माहौल बना हुआ है। और जल्द ही विधान सभा चुनाव शुरू होने जा रहे है। जिसके कारणदेश भर की राजनितिक पार्टियों के बीच गरमा गर्मी का माहौल है।  सभी पार्टियां अपनी-अपनी पार्टी को जीताने की हर संभव में जुटी हुई है। चारों पार्टीय़ां राज्य में जगह जगह जाकर रैलिय़ां कर रही है . आपको बता दें इस चुनावी समय़ में अखिलेश सरकार ने बहुत ही चुनावी दाव खेल लिया है , सपा के प्रदेश अध्य़क्ष अखिलेश य़ादव  ने 17 ओबीसी (O B C) जातिय़ों को अनुसूचित जाति(SCHEDULED CASTE) कोटे में डालने का फैसला किय़ा है । य़ह जातिय़ां हैं - कहार, कश्य़प, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीमर, बाथम, तुरहा, गोंड, बिंद । हाल ही में हुई कैबिनेट की बैठक में 74 से ज्य़ादा  प्रस्तावों को पास किय़ा गय़ा है और 30 से ज्य़ादा महत्वपूर्ण फैसले भी किए गए हैं। जिसमें एक प्रस्ताव य़ह भी था ....... अब इस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास भेजा जाएगा ।  













Wednesday, 26 October 2016


सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर से कुछ ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है, जिसका भारतीय चुनावी प्रक्रिया और भारतीय संविधान पर दूरगामी असर पड़ सकता है।
धर्म के आधार पर वोट की अपील करने की मनाही के कानूनी दायरे पर विचार कर रही सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मंगलवार को एक बार फिर साफ किया कि वे हिन्दुत्व या धर्म के मुद्दे पर विचार नहीं करेंगे। फिलहाल कोर्ट के सामने 1995 का हिन्दुत्व का फैसला विचाराधीन नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें जो मसला विचार के लिये भेजा गया है उसमें हिन्दुत्व का जिक्र नहीं है। उन्हें विचार के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) की व्याख्या का मामला भेजा गया है जिसमें धर्म के नाम पर वोट मांगने को चुनाव का भ्रष्ट तरीका माना गया है। कोर्ट इसी कानून की व्याख्या के दायरे पर विचार कर रहा है।  
जानिये हिंदुत्व का यह पूरा मामला है क्या ? क्यों सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर बात करने से इनकार कर रही।  बात ये है की  इस मामले की जड़ें नब्बे के दशक के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से जुड़ी है , जिसमे हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने के आधार पर बम्बई हाई कोर्ट ने करीब दस नेताओं का चुनाव रद्द कर दिया था। हाई  कोर्ट ने इसे चुनाव का भ्रष्ट तरीका माना था, हालांकि 1995 में सुप्रीमकोर्ट ने हाई कोर्ट ने फैसला पलट दिया था। उस समय न्यायधीशों की तीन पीठ की बैठक में कहा था कि हिंदुत्व सिर्फ कोई धर्म नहीं बल्कि एक जीवनशैली है। यहाँ तक कि बीजेपी के नेता अमिताभ सिंह की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित रह गयी। 
अब एक बार फिर सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने 1995 में आये फैसले पर दोबारा विचार की दरख्वास्त की।  उनकी मांग थी चुनाव में राजनीतिक पार्टियों को हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने से रोक जाए।  फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने हिदुत्व को नए सिरे से परिभाषित करने से इनकार करते हुए बीते मंगलवार को कहा कि अब वह इस मुकाम पर  की पुनर्समीक्षा नहीं करेगा।  इस मसले पर मुख्य न्यायधीश टीएस ठाकुर सहित सात सदस्यीय जजों की पीठ ने कहा , हम बड़ी बहस में नही जाना चाहेंगे कि हिंदुत्व क्या है और इसके मायने क्या है। हम अपने 21 बर्ष पुराने फैसले पर भी पुनर्विचार नहीं करेंगे। हम सिर्फ इस फैसले को संदर्भ के तौर पर पेश किये जाने वाले मामले की ही सुनवाई करेंगे।  

Tuesday, 25 October 2016

एडमिशन न लेने वाले स्कूलों पर कार्रवाई से इंकार |

इस मोर्डर्न जमाने में बच्चों का बेहतर भविष्य उनकी बेहतर स्कूली शिक्षा से बनता है , लेकिन अब हाल यह हो चुका है कि राजधानी के कई स्कूल ऐसे है जो बच्चों को अपने विद्यालय में एडमिशन ही नही देते है। ऐसे विद्यालयों पर पहले  करवाई का प्रावधान था जिससे बच्चों के माता-पिता को ज्यादा मुश्किलो का सामना नहीं करना पड़ता था , लेकिन राईट टू एजुकेशन (R T I) के तहत  बच्चों का  एडमिशन न लेने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई से जिला प्रशासन ने इनकार कर दिया है  । अफसरों का कहना है  कि आरटीआई एक्ट में एडमिशन के लिए पूरी गाइडलाइन दी गयी है , लेकिन इस पर कार्रवाई न करने वाले स्कूलों पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई का कोई प्रावधान नही है  । आलम यह है कि ६ से अधिक स्कूलों ने एडमिशन देने से मन कर दिया है जिससे लगभग 200 पेरेंट्स भटक रहे है और जब जिला प्रशासन से सवाल किया तो वे यह कहकर पीछे हट गए की कार्यवाई का कोई प्रावधान  ही नही है। और वहीँ एक ओर  आरटीआई एक्टिविस्ट समीना बानो ने बताया कि आरटीआई में भले ही कार्रवाई का कोई नियम न हो, लेकिन स्कूलों  को शासन की ओर से आदेश जारी किया गया है। इस बयान के बाद भी अगर कोई स्कूल बच्चों को एडमिशन देने से मना कर रहा है तो यह शासनादेश का उल्लंघन समझा जाएगा और उनपर कड़ी  कार्यवाई भी की जा सकती है।  इन सब  से  तो यही  समझ आता है जिला प्रशासन जरूरतमंद  बच्चों के एडमिशन के लिए प्रयास ही नहीं कर रही है  बल्कि  उनकी शिक्षा में रोड़ा बनने का काम कर रही है।  लखनऊ के  डीएम का कहना है कि इस बारे मे कानूनी राय ली गयी है। इस एक्ट के तहत कोई भी  कार्रवाई का प्रावधान नही है और ऐसे में हम चाहते हुए भी स्कूलों  पर  कार्रवाई नहीं कर सकते।



Sunday, 16 October 2016

स्वदेशी कंपनी पर आज एक रुपये का भी कर्ज नहीं

1920 का वक्त और उसी समय गांधी जी  के आह्वान पर असहयोग आंदोलन का आगाज। ब्रिटिश शासकों और कंपनियों के खिलाफ जनता में जबर्दस्त आक्रोश था। जगह-जगह विदेशी कपड़ों की होली जलाई जा रही थी। 1857 के बाद से फिर राष्ट्रवादी माहौल का उभार शुरू हुआ। उसी कालचक्र में 1925 में हेडगेवार आरएसएस की स्थापना कर राष्ट्रवाद को धार देने में जुटे थे, मगर विदेशी कंपनियों का मुकाबला करने के लिए भी कोई स्वदेशी कंपनी होनी चाहिए थी। इस बीच 1929 में गौर मोहन दत्ता ने स्वदेशी आंदोलन को व्यावसायिक धरातल पर उतारते हुए जीडी फार्मास्युटिकल्स की कलकत्ता में नींव डाली। जब कंपनी ने  बोरोलिन क्रीम बाजार में उतारी तो तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय चौंक पड़ा। अंग्रेजी हुकुमत में बोरोलीन जैसी भारतीय कंपनी की लोकप्रियता से अंग्रेज अफसर परेशान हो गए। उन्होंने कई तरह की बंदिशें डालनी शुरू कीं, मगर इन सबसे लड़ते हुए बोरोलीन क्रीम हिंदुस्तान की जनता के हाथ पहुंचती रही। तब से आज 87 साल हो गए, मगर आज भी कंपनी की सेहत पर कोई असर नहीं है। जहां आज बडे़-बड़े औद्यौगिक घरानों की कंपनियों हजारों करोड़ के कर्ज में डूबी हैं वहीं यह स्वदेशी मॉडल की कंपनी पर देश की जनता का सरकार का एक रुपया भी कर्ज नहीं है। बिना किसी मार्केटिंग तामझाम के भी यह कंपनी 2015-16 में 105 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल करने में सफल रही। बोरोलिन प्रोडक्ट की लोकप्रियता का ही नतीजा है कि इसकी निर्माता फार्मा कंपनी को भी बोरोलिन कंपनी लोग कहने लगे। यानी जीडी फार्मा और बोरोरिन एक दूजे के पर्याय बन गए।
देश आजाद हुआ तो बांटी थी एक लाख क्रीम
 बोरोलिन के संस्थापक गौर मोहन दत्ता के पौत्र देबाशीष दत्ता इस समय कंपनी के एमडी हैं। कहते हैं कि जब 1947 में देश आजाद हुआ तो कंपनी ने हरे रंग की ट्यूब वाली एक हजार क्रीम बांटी। अंग्रेजी हुकूमत में जिस तरह से स्वदेशी कंपनी की राह में रोड़े अटकाए गए उन रोड़ों के अंग्रेजों की विदाई के साथ खत्म होने के जश्न में कंपनी ने सबके गाल पर मुफ्त में क्रीम पहुंचाने की पहल की। 
नेहरू हों या राजकुमार सबके घर पहुंची क्रीम
1929 में स्थापना के बाद से बोरोलिन क्रीम की इतनी लोकप्रियता बढ़ी कि उस समय के सभी बड़े कांग्रेसी नेता और अन्य हस्तियां इसे इस्तेमाल में लाने लगीं। चाहे पंडित नेहरू रहे हों या फिर अभिनेता राजकुमार। बोरोलिन की खुशबू  और एंटीसेप्टिक होने के चलते लोग इस स्वदेशी क्रीम के दीवाने बनते गए।